Chhath Puja 2025: आज नहाए -खाए से छठ महापर्व की शुरुआत हो चुकी है. चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में छठी मैया और सूर्य देवता की पूजा की जाती है. ऐसा …
छठ महापर्व आज से शुरू हो चुका है. इस महापर्व में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा का विधान है. छठ का व्रत महिलाएं संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लि…
व्रती प्रातः काल गंगा, नदी, तालाब या किसी पवित्र जलाशय में स्नान करते हैं. स्नान के बाद व्रती शुद्ध, सादा और साफ वस्त्र पहनते हैं. स्नान के बाद रसोई और पूजा स्थल को साफ किया जाता है. माना जाता है कि छठी मैया स्वच्छता और पवित्रता की प्रतीक हैं, इसलिए किसी भी तरह की अशुद्धि नहीं होनी चाहिए. इस दिन व्रती एक बार ही भोजन करते हैं, जिसे “नहाय-खाय का प्रसाद” कहा जाता है. खाना कांसे या पीतल के बर्तन में और मिट्टी के चूल्हे पर बनाया जाता है. खाना बनाने में आम की लकड़ी या गोबर के उपले का उपयोग किया जाता है क्योंकि इन्हें सात्विक और शुद्ध माना जाता है. भोजन में आमतौर पर कहू की सब्जी, चने की दाल और सादा चावल बनाया जाता है. नहाय-खाय के दिन ही व्रती छठ व्रत का संकल्प लेते हैं और आने वाले तीन दिनों तक शुद्धता, संयम और भक्ति का पालन करते हैं.
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खरना व्रतखरना छठ पूजा का दूसरा दिन होता है. इसे लोहंडा या खरना व्रत भी कहा जाता है. इस दिन व्रती पूरे दिन बिना अन्न और जल के उपवास रखते हैं, और शाम को विशेष विधि से प्रसाद बनाकर छठी मैया को अर्पित करते हैं.
संध्या अर्घ्यछठ पूजा का तीसरा दिन सबसे विशेष और भव्य माना जाता है. इसे “संध्या अर्घ्य” या “संध्या घाट पूजा” कहा जाता है. इस दिन व्रती शाम के समय अस्त होते सूर्य (अस्ताचलगामी सूर्य) को अर्घ्य देते हैं.
सूर्योदय अर्घ्यछठ पूजा का चौथा दिन इस महापर्व का अंतिम और सबसे पावन दिन होता है. इसे “उषा अर्घ्य”, “भोर का अर्घ्य” या “सूर्योदय अर्घ्य” कहा जाता है. इस दिन व्रती सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर अपने 36 घंटे के निर्जला व्रत का समापन करते हैं.

Chhath Puja 2025: चार दिवसीय छठ महापर्वशनिवार को अनुराधा नक्षत्र और शोभन योग में नहाय-खाय के साथ शुरू होगा। व्रती गंगा नदी में स्नान के बाद भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर नहाय-खाय प्रसाद बनाएंगे। प्रसाद के रूप में अरवा चावल, चना दाल, कहु की सब्जी और आंवले की चटनी आदि को भगवान का भोग लगाकर उसे ग्रहण करेंगे। वे चार दिवसीय अनुष्ठान का संकल्प लेंगे। ज्योतिषाचार्य पीके पुग बताते हैं कि व्रत के दूसरे दिन रविवार की शाम में ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र में गुड़ से बने खीर, रोटी, केला आदि खरना प्रसाद के रूप में ग्रहण करेंगे। खरना प्रसाद ग्रहण करते समय गौ का भाग (पास) निकाल कर व्रती चार दिवसीय अनुष्ठान के लिए गाय को भी साक्षी बनाएंगे। व्रती 36 घंटे के निर्जला उपवास की शुरुआत करेंगे।
शनिवार को अनुराधा नक्षत्र और शोभन योग में नहाय-खाय के साथ शुरू होगा। व्रती गंगा नदी में स्नान के बाद भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर नहाय-खाय प्रसाद बनाएंगे। प्रसाद के रूप में अरवा चावल, चना दाल, कडू की सब्जी और आंवले की चटनी आदि को भगवान का भोग लगाकर उसे ग्रहण करेंगे। वे चार दिवसीय अनुष्ठान का संकल्प लेंगे। ज्योतिषाचार्य पीके पुग बताते हैं कि व्रत के दूसरे दिन रविवार की शाम में ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र में गुड़ से बने खीर, रोटी, केला आदि खरना प्रसाद के रूप में ग्रहण करेंगे। खरना प्रसाद ग्रहण करते समय गो का भाग (ग्रास) निकाल कर व्रती चार दिवसीय अनुष्ठान के लिए गाय को भी साक्षी बनाएंगे। व्रती 36 घंटे के निर्जला उपवास की शुरुआत करेंगे।
ज्योतिषाचार्य पीके युग बठाते है कि डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते समय सूर्य मंत्र का जाप बेहद प्रभावी होता है। श्रद्धालु भगवान भास्कर को अध् अर्पित करते समय ॐ घृणि सूर्याय नमः गायत्री मंत्र पा आदित्य हृदय स्रोत का पाठ करना शुभकर होता है।
छठी मइया के भाई के सूर्यदेव ज्योतिषी अवध बिहारी त्रिपाठी बताते हैं कि मार्केडय पुराण व वाल्मिकी रामायण के अनुसार सूरदिव, छठी मइया के भाई है। बाल्मिकी पुराण के अनुसार रावण वध के बाद रामजी राजसूय यज्ञ किए थे। उस समय मुंगेर में माता सीता गंगा नदी के किनारे छठ व्रत की थी। मार्केडय पुराण के अनुसार सबसे पहले छठ व्रत दौपदी ने किया था। जिससे पांडवों का राजपाट जो खो चुके थे वह प्राप्त हो गया था। उन्होंने पुराण का हवाला देते हुए एक अन्य उदाहरण में बताया कि छठी माता सूर्य की बहन और भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री है। कुछ अना पुराणों में कात्यायनी देवी को भी छठी मइया कहा गया है। जिसकी पूजा षष्ठी तिथि को किया जाता है। इस दिन ईख चढ़ाया जाता है, क्योंकि सूर्य से इसका संबंध है।
खरना प्रसाद ग्रहण करने के 24 घंटे निर्जला उपवास के बाद महावत के तीसरे दिन शाम (27) को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। ज्योतिषाचार्य पीके युग के अनुसार इस वर्ष अस्ताचलगामी सूर्य को पूर्वाषाढ़ा
छठी मइया के भाई के सूर्यदेव: ज्योतिषी अवध बिहारी त्रिपाठी बताते हैं कि मार्केडय पुराण व बाल्मिकी रामायण के अनुसार सूर्यदेव, छठी मद्रया के भाई है। बाल्मिकी पुराण के अनुसार रावण वध के बाद रामजी राजसूय यज्ञ किए थे। उस समय मुंगेर में माता सीता गंगा नदी के किनारे छठ व्रत की थी। मार्केडय पुराण के अनुसार सबसे पहले छठ व्रत दौपदी ने किया था। जिससे पांडवों का राजपाट जो खो चुके थे वह प्रत्प्त हो गया था। उन्होंने पुराण का हवाला देते हुए एक अन्य उदाहरण में बताया कि छठी माता सूर्य की बहन और भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं। कुछ अन्य पुराणों में कात्यायनी देवी को भी छठी मढ्या कहा गया है। जिसकी पूजा षष्ठी तिथि को किया जाता है। इस दिन ईख चढ़ाया जाता है, क्योंकि सूर्य से इसका संबंध है।
खरना प्रसाद ग्रहण करने के 24 घंटे निर्जला उपवास के बाद महाव्रत के तीसरे दिन हाम (27) को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। ज्योतिषाचार्य पीके युग के अनुसार इस वर्ष अस्ताचलगामी सूर्य को ‘पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र और मंगलवार को उगते हुए सूर्य को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र और उभयचर व अमलाकृति योग में अध्ये देंगे। पं. प्रेमसागर पांडेय बताते हैं कि व्रती सोमवार को डूबते सूर्य को सूर्यास्त से आधा एक घंटे पहले से अर्घ्य दे और उगते सूर्य की लालिमा होने के बाद अर्घ्य दिया जा सकता है।


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